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बौने हुए विराट हमारे गाँव में / विजय किशोर मानव

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बौने हुए विराट हमारे गांव में।
बगुले हैं सम्राट हमारे गांव में॥

घर-घर लगे धर्मकांटे लेकिन,
नक़ली सारे बांट हमारे गांव में॥

हर मछली को सुख के आश्वासन
मछुआरे हैं घाट हमारे गांव में।

मुखिया का कुरता है रेशम का
भीड़ पहनती टाट हमारे गांव में।

सुबह पीठ मिलती है छिली हुई
चुभती है हर खाट हमारे गांव में।

रात शुरू होकर दिन-भर चलते
चक्की के दो पाट हमारे गांव में॥

दिन-भर खटकर सोना आधे पेट
ऐसा बंदरबांट हमारे गांव में॥