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बौनों ने आकाश छुआ है / उमेश चौहान

बौनों ने आकाश छुआ है

नई सुबह है मस्त हवा है
गुणाभाग सब पस्त हुआ है
 बदली बदली जनता सारी
बदला सा हर एक युबा है

परिवर्तन की बाट जोहती
दुनिया सारी अब लगती है
सोच नई है जोश नया है
बदल रहा अंदाजे बयाँ है

 गढ़ने को नूतन परिभाषा
 र्ध्म कर्म नैतिकता सबकी
बूढ़ा पीपल कुंचियाया है
 डाल डाल प्रस्फोट हुआ है

घ में कीचड़ बाहर कीचड़
कीचड़ मलने की आदत से
छुटकारा पाने को व्याकुल
थोथेपन का दुर्ग ढहा है

अब स्वीकार नहीं हे बिघटन
 भाव विभेद व्यर्थ का सारा
कठिन काल में अभिनव पथ का
अर्थ बोध आसान हुआ है

ग्रहण मिटा है नव किरणों की
 आषा में उम्मीद जगी है
पराभूत करने की पीड़न को
बौनों ने आकाश छुआ है