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बौर आ गए / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
आमों में बौर आ गए
डार पात
फुदकने लगे
सब के
सिरमौर आ गए
रंगों में
बँट रहे ख़िताब
खुली पड़ी
धूप की किताब
जाँबाज़ों की बस्ती में
कुछ थे
कुछ और आ गए