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ब्यर्थ कौ चिन्तन-चिरन्तन का करैं / सालिम शुजा अन्सारी
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ब्यर्थ कौ चिन्तन-चिरन्तन का करैं
म्हों इ टेढौ है तौ दरपन का करैं
देह तज डारी तुम्हारे नेह में
या सों जादा और अरपन का करैं
आतमा बिरहिन बिरह में बर रई
या में भादों और सावन का करैं
प्रेम कौ अमरित निकसनौ नाँय तौ
क्षीर-सागर तेरौ मंथन का करैं
ढेर तौ होनो इ है इक रोज याहि
काया माटी कौ है बर्तन का करैं
झर रहे हैं डार सों पत्ता सतत
बोल कनुआ तेरे मधुबन का करैं
ब्रज-गजल कौं है गरज पच्चीस की
चार छः "सालिम" बिरहमन का करैं