भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्याळि छै कन आज कन तू हे लठ्याळी / लोकेश नवानी
Kavita Kosh से
साँचा:KKCatGadhwaliKavita
ब्याळि छै कन आज कन तू हे लठ्याळी
जिंदगी टेढ़ू सफर चा हे लठ्याळी।
ब्याळि ही भरपूर ज्वनि ऐ छाई त्वे पर
कब मुखड़ि कू रंग उड़िगे हे लठ्याळी।
एक दिन जै थौळ की ठकुराण रै तू
छै खड़ी चुप आज तू वेका तिर्वाळी।
गीत तिन कतनै लगै छा जिन्दगी का
आज शब्दू से बि तेरि जिकुड़ी खाली।
तेरा मन की तीस तेरी आंखि ब्वन्नी
ब्याळि भी छै आज भी उतनै तिसाळी।
अब स्यो तेरू छैल त्वे से नी बच्याणू
तू कतग रै हौंसिया तू रै मयाळी।
जै बसन्त जगळद तिन दिन दिन गणीना
बिन बोल्यां चुपचाप सुर चलिग्याय ब्याळी।
खितकणी नी मारि कबि बगछट नि ह्ने तु
क्वी बिटिम गे जिंदगी इन ह्नेइ गाळी।
नी लगाया रौंस का क्वी गीत ज्वनि मा
तिन ज्वनि मा
मुंड मलासी मीलि छा सब ह्वेनि आसिरबाद गाळी।