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ब्रजमंडल अमरत बरसै री / जुगलप्रिया
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ब्रजमंडल अमरत बरसै री।
जसुदानंदन गोप-गोपिन को सुख सोहाग उपजै सरसै री॥
बाढ़ी लहर अंग-अंगन में जमुना तीर नीर उछरै री।
बरसत कुसुम देव अंबरतें सुरतिय दरसन हित तरसै री॥
कदलौ बंदनवार बंधाये तोरन धुज सौथिया दरसै री।
हरद दूब दधि रोचन साजै मंगल कलस देख हरसै री॥
नाचै गावै रंग बढ़ावै जो जाके मन में भावै री।
शुभ सहनाई बजत रात-दिन चहुँदिसि आनंदघन छावै री॥
ढाढ़ी ढाढ़िन नाचि रिझावै जो चाहे जो, सो पावै री।
पलना ललना झूल रही है जसुदा मंगल गुन गावै री॥
करै निछाबर तन मन सरबस जो ब्रजनंदन को जावै री।
जुगल प्रिया यह नंद महोत्सव दिन प्रति वा ब्रज में होवै री॥