भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्रह्मनिष्ठ / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
जाके जियत सुवास वास दश दिशहिँ पसारा। जाके वदन विलोकि विमल सुख है अधिकारा॥
जा को सवते हेतु वैर काहूते नाहीं। जाकी प्रभुसाँ प्रीति रीति सन्तन हियमाँही॥
प्रगट कला भगवन्तकी, भाव भक्ति सब कोई करै।
धरनी पूरन व्रह्म गति, वहुरि मरे ना अवतरे॥5॥