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ब्रह्मा जी नै रची स्रष्टि, फैलादी त्रिगुणी माया / ललित कुमार

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ब्रह्मा जी नै रची सृष्टि, फैलादी त्रिगुणी माया,
वैसा ही फल मिलै जगत म्य, जैसा बन्दे कर्म कमाया || टेक ||

असुर कुल जन्मे गया, विष्णु जी नै रटण लागे,
श्रीहरि नै दिया वरदान, दर्शन तै पाप कटण लागे,
न्यू पापी जग मै घटण लागे, देख यम घबराया ||

विश्रवेसुर का पुत्र रावण, ब्राहमण हो अभिमानी हुआ,
पारासर का वेद्ब्यास, तप करके महाज्ञानी हुआ,
सूर्य का कर्ण दानी हुआ, न्यू दानी नाम धराया ||

गंधर्व पुत्र विश्वावसु नै, ऋषियों का किया अपमान,
वशिष्ठ ऋषि नै श्राप दे दिया, राक्षस रूपी बणज्या शान,
ऋषि का यो सुण ऐलान, विश्वावसु घबराया ||

गुरु जगदीश ज्ञान का सागर, ललित तिरके होज्या पार,
जमदग्नि के परशुराम नै, पृथ्वी जीती इक्कीस बार,
आहुष पुत्र होया नाहुष जार, अजगर बणा स्वर्ग तै गिराया ||