भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ब्रह्म कमण्डल से निकसी / अनुराधा पाण्डेय
Kavita Kosh से
ब्रह्म कमण्डल से निकसी अरु लीन भयी शिव जूट मझारी।
गंग रही उझराय जटा, बहु काल वहीं निज वेग बिसारी।
सोच भगीरथ भग्न मना, किमि संतति पाप कटे अति भारी।
घोर किये तप वे पुनि जैं, लट से शुचि धार तजैं त्रिपुरारी।