भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भइसासुर की अमिली रे / बघेली
Kavita Kosh से
बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
भइसासुर की अमिली रे देव अमिली रे
अरर बरर गई डार देव भइसासुर रे
ऊपर मोतिया करहइं रे करहइं रे
तरे भइसा रखवार देव भइसासुर रे
उयं भइसा ना जान्या रे देव जान्या रे
जउन लादइं तेलिया कलार रे देव भइसासुर रे
बारह भाठी मद पियै रे देव मद पियै रे
सोरहा बकरा खाय रे देव भइसासुर रे
लोहेन के लौह सांकर टोरइं
फारइं बजुर केमार देव भइसासुर रे
भूतन दासन भूतन ओढ़न भूतन करइं अहार
देव भइसासुर रे
भइसासुर रे
भइसासुर की अमिली रे देव अमिली रे
अरर बरर गई डार देव भइसासुर रे