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भई ने बिरज की भोर सखी री / बुन्देली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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भई ने बिरज की भोर सखी री
मैं तो भई ने बिरज की मोर।
कहना रहती कहना चुनती
कहना करती किलोल सखी री। भई...
गोकुल रहती वृन्दावन चुगती
मथुरा करती किलोल। सखी...
गोवर्धन पे लेत बसेरो,
नचती पंख मरोर। सखी...
उड़-उड़ पंख गिरे धरनी पे
बीनत जुगल किशोर। सखी...
वृन्दावन की महिमा न्यारी,
वाको ओर न छोर। सखी...