भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भऊजी छली गर्भ स नन्दी अरजी करु रे ललना / मैथिली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

भऊजी छली गर्भ स नन्दी अरजी करु रे
ललना अपना घर होयत बालक कंगन हम इनाम लेब रे।
एक पैर देलनि एहरि पर दोसर देहरि पर रे
ललना रे तेसरे में होरीला जनम लेब कंगन हम लेहब रे।
मचीया बैसल तोहे अम्मा कि तोही मोरा हीत बाजु हे
अम्मा भऊजी बोलनि कुबोलिया कंगन हम लेहब रे।
सोइरी बैसल आहां पुतहु बतहु दुलरइतीन हे
पुतहु दय दिय हाथ के कंगनमा नन्दी थीक पाहुन रे।
मचीया बैसल आहां सासु अहुं मोरा हीत थीक हे
सासु कहां दिय कंगनमा कंगन नहिं मिलत रे।
पलंगा सुतल आहां भईया कि अहुं सिर साहब हे भऊजी
बजलिन कुबोलिन कंगन मिलत हे।
दुधवा पियविते आहां सुहबे अहीं सुहालीन रे
ललना दय दिय हाथ के कंगनामा बहिन मोरा पाहुन हे।
पलंगा सुतल आहां पिया अहुं सिर साहब हे
पिया कहां स दय दिय कंगनमा कंगन नहिं मिलत रे
चुपु रहु बहीन सहोदर बहिन हम करब हम दोसर बियाह,
कंगन आहां के देहब रे।
कोंचा स कंगना निकाली भुईंया में फ़ेंकि देली रे
नन्दी तुहु नन्दी सात भतरी कंगन जरि लागल हे।


यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से