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भक्ती भरमणा दुर करो / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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भक्ती भरमणा दुर करो,
आरे ठगाई नही जाणा
(१) कायन की साधु गोदड़ी,
आरे कायन का हो धागा
कोण पुरुष दर्जी भया
कुण सिवण हारा...
भक्ती...
(२) हवा की बणी साधु गोदड़ी,
आरे पवन का हो धागा
मन सुतार दर्जी भया
वो सिवण हारा...
भक्ती...
(३) काहाँ से आई रे हवा पवन,
आरे कहा से आया रे पाणी
कहा से आई रे मिर्गा लोचणी
कळु कब की छपाणी...
भक्ती...
(४) आग आई रे हवा पवन,
आरे पीछे आया रे पाणी
बीच म आई रे मिर्गा लोचणी
कळु जब की छपाणी...
भक्ती...
(५) धवळो घोड़ो रे मुख हंसळो,
आरे मोती जड़ीया रे लगाम
चंदा सुरज दुई पैगड़ा
प्रभू हूया असवार...
भक्ती...