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भगवान, मुझे एक साली दो / गोपालप्रसाद व्यास

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तुम श्लील कहो, अश्लील कहो
चाहो तो खुलकर गाली दो !
तुम भले मुझे कवि मत मानो
मत वाह-वाह की ताली दो  !

पर मैं तो अपने मालिक से
हर बार यही वर माँगूँगा -
तुम गोरी दो या काली दो
भगवान मुझे इक साली दो !

सीधी दो, नखरों वाली दो
साधारण या कि निराली दो,
चाहे बबूल की टहनी दो
चाहे चंपे की डाली दो ।

पर मुझे जन्म देने वाले
यह माँग नहीं ठुकरा देना -
असली दो, चाहे जाली दो
भगवान मुझे एक साली दो ।

वह यौवन भी क्या यौवन है
जिसमें मुख पर लाली न हुई,
अलकें घूँघरवाली न हुईं
आँखें रस की प्याली न हुईं ।

वह जीवन भी क्या जीवन है
जिसमें मनुष्य जीजा न बना,
वह जीजा भी क्या जीजा है
जिसके छोटी साली न हुई ।

तुम खा लो भले प्लेटों में
लेकिन थाली की और बात,
तुम रहो फेंकते भरे दाँव
लेकिन खाली की और बात ।

तुम मटके पर मटके पी लो
लेकिन प्याली का और मजा,
पत्नी को हरदम रखो साथ,
लेकिन साली की और बात ।

पत्नी केवल अर्द्धांगिन है
साली सर्वांगिण होती है,
पत्नी तो रोती ही रहती
साली बिखेरती मोती है ।

साला भी गहरे में जाकर
अक्सर पतवार फेंक देता
साली जीजा जी की नैया
खेती है, नहीं डुबोती है ।

विरहिन पत्नी को साली ही
पी का संदेश सुनाती है,
भोंदू पत्नी को साली ही
करना शिकार सिखलाती है ।

दम्पति में अगर तनाव
रूस-अमरीका जैसा हो जाए,
तो साली ही नेहरू बनकर
भटकों को राह दिखाती है ।

साली है पायल की छम-छम
साली है चम-चम तारा-सी,
साली है बुलबुल-सी चुलबुल
साली है चंचल पारा-सी ।

यदि इन उपमाओं से भी कुछ
पहचान नहीं हो पाए तो,
हर रोग दूर करने वाली
साली है अमृतधारा-सी ।

मुल्ला को जैसे दुख देती
बुर्के की चौड़ी जाली है,
पीने वालों को ज्यों अखरी
टेबिल की बोतल ख़ाली है ।

चाऊ को जैसे च्याँग नहीं
सपने में कभी सुहाता है,
ऐसे में खूसट लोगों को
यह कविता साली वाली है ।

साली तो रस की प्याली है
साली क्या है रसगुल्ला है,
साली तो मधुर मलाई-सी
अथवा रबड़ी का कुल्ला है ।

पत्नी तो सख़्त छुहारा है
हरदम सिकुड़ी ही रहती है
साली है फाँक संतरे की
जो कुछ है खुल्लमखुल्ला है ।

साली, चटनी पोदीने की
बातों की चाट जगाती है,
साली है, दिल्ली का लड्डू
देखो तो भूख बढ़ाती है ।

साली है, मथुरा की खुरचन
रस में लिपटी ही आती है,
साली है, आलू का पापड़
छूते ही शोर मचाती है ।

कुछ पता तुम्हें है, हिटलर को
किसलिए अग्नि ने छार किया ?
या क्यों ब्रिटेन के लोगों ने
अपना प्रिय किंग उतार दिया ?

ये दोनों थे साली-विहीन
इसलिए लड़ाई हार गए,
वह मुल्क-ए-अदम सिधार गए
यह सात समुन्दर पार गए ।

किसलिए विनोबा गाँव-गाँव
यूँ मारे-मारे फिरते थे ?
दो-दो बज जाते थे लेकिन
नेहरू के पलक न गिरते थे ।

ये दोनों थे साली-विहीन
वह बाबा बाल बढ़ा निकला,
चाचा भी कलम घिसा करता
अपने घर में बैठा इकला ।

मुझको ही देखो साली बिन
जीवन ठाली-सा लगता है,
सालों का जीजा जी कहना
मुझको गाली सा लगता है ।

यदि प्रभु के परम पराक्रम से
कोई साली पा जाता मैं,
तो भला हास्य-रस में लिखकर
पत्नी को गीत बनाता मैं ?