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भगवान का भक्त / आर. चेतनक्रांति

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कृतज्ञ होकर मैंने ईश्वर से डरने का फैसला किया

जब बिल्ली अँगड़ाई लेकर चलती
जब तीसरी आँख का कैमरा क्लिक करता
और अनिष्ट का देवता क्लोजअप में मुस्कुराता

जब दूर कहीं से कोई डरावनी आवाज़ें भेजता
जब किताबों में लिखे काले मुँहवाले शब्द
छिपकलियों और तिलचट्टों की तरह पीले पन्नों से निकलते
और सरसराकर नीली दीवारों पर फैल जाते
मैं ईश्वर का आभार व्यक्त करता कि मुझे कुछ नहीं हुआ

संसार वीरता में मस्त था
कण-कण में युद्ध था
पाए जा चुके मकसद और हासिल किए जा चुके किले थे
जो कहते थे कि रुको मत

मैं कृतज्ञता का मोटा कम्बल ओढ़े
क़दम-क़दम खड़े
भिखारियों को चेतावनी की तरह सुनता
हर मन्दिर को शीश नवाता
प्रणाम करता हर सफ़ेद चीज़ को
कहता हुआ कि कृपा है, आपकी कृपा है
गर्दन झुकाए चला जाता
सबसे घातक भीड़ के भी बीच से
मुस्कुराता हुआ
बुदबुदाता हुआ – दूर हटो, दूर हटो, दूर हटो, कीड़ों !