भगीरथी के हम रखवाले,
बनकर घूम रहे हैं दर-दर।
बैनर की प्रतियाँ शहरों में,
जगह-जगह चिपकाते हैं।
नए-नए मुद्दों को लेकर,
नित आवाज़ उठाते हैं।
दुर्गन्धों में दबे हुए हैं,
फिर भी गंगा मइया के स्वर।
जय गंगा की बोल-बोल कर,
क्या गंगा बच जाएगी?
अरे! हमारे कर्म प्रदूषित,
त्राहि-त्राहि मच जाएगी।
मन भर कचरा भेज रहे हैं,
निज घर से गंगा माँ के घर।
कितने ही अभियान चला लें,
विफल रहेंगे यदि सोए.
कॉलर पकड़ो; ख़ुद से पूछो,
गंगा आख़िर क्यों रोए?
संतानों! माँ के प्रति मिलकर,
सबको होना होगा तत्पर।