भगीरथ के पीर बड़ोॅ होतै
तबेॅ धरती पर गंगा एैली होतै ।
ई जे बहै छै खलखल पानी
केकरो आंखी के लोर बहलोॅ होतै ।
युग धर्म आरो कर्म के पहचान गंगा
सफल धरती के तपस्या होलोॅ होतै ।
देखोॅ करी कल्पना भगीरथ पीर के
ई युग नांकी ऊ बेपीर नै रहलोॅ होतै ।
पानी-पानी होल गेलोॅ छै आय गंगा
हमरा तोरा ई समझ कहिया होतै ।