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भजकटिया मसूर / पीसी लाल यादव

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भजकटिया डार के रांधे हँव मसूर, रांधे हँव मसूर
येल-येल के खावय मोर बूढ़हा ससूर...।

बड़े बिहनिया धरसा ले टोर के,
लाने रिहिस बबा पटका म जोर के।

कहूँ नई रांधतेंव त बततिस मोरे कसूर।

झिंतरी झिंतरी कांटा फरे गोल-गोल,
उसन के बीजा ल निकालेंव पिचकोल।

एक घाँव खाही तेन दुसरइया मांग ही जरूर।

मिरचा फोरन डार रांधेव बघार,
पारा-परोस ममहागे चारे-दुवार।

नई चाही दार चिखना नई अथान के कूर।

भजकटिया मसूर पुस्टई के खजाना।
बबा ह कहिथे नाती जरूर खाना।

मुच-मुच मगन बबा, नाचे मन-मंजूर।