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भजन-कीर्तन: कृष्ण / 1 / भिखारी ठाकुर

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भादो, देवकि देव गर्भ जनम गोपी गृहे बर्द्धनम्।
माया पुतन जीव ताप हरणं गोवर्धनो धाराणाम्।
कंसादिक छेदनं कौरवादि हनतं कुन्ती सुताः पालनं।
एतत् भागवत पुराण कथिंतं श्री कृष्ण लीलामृतं।

प्रसंग: इस श्लोक के आधार पर कीर्त्तन कजरी लय में।

जय गोपाल, जय गोपाल, जय गोपाल, जय गोपाल।
देवकी माता, पिता बासुदेव साथे रहत सादा बलदेव कहइलन नंद, यशोदा लाल-जय-जय गोपाल...
लिहलन पूतना के जान, तवन जानल जहान; होके गोदी के बाल॥ जय गोपाल...
भइल बृज में पुकार, नख पर गिरिवर धार; कृष्णचंद्र तत्काल। जय गोपाल...
देखिकर अत्याचार; मरलन कंस के पछार; हउवन कालो-के-काल॥ जय गोपाल...
कौरव वंस के हतन् कइलन, करिके जतन भइलन पाण्डव निहाल। जय गोपाल...
करत ‘भिखारी’ गान; श्री भागवत पुरान; श्लोक के निकाल। जय गोपाल...