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भजन-कीर्तन: कृष्ण / 24 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

रजस्वला द्रौपदी कौरव-सभा में अरक्षित खड़ी है। दुर्योधन की आड़ में दुःशासन उसकी साड़ी खींच रहा है। अपनी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण को पुकारती है। यह पूर्ण समर्पण की स्थिति है।

द्रौपदी-पुकार

अबकी राखली सरकार॥टेक॥
दुर्योधन धन पाई गर्व करी त्यागे सकल बिचारा॥
करि बरिआरी सारी खिंचवावत हँसत बा सब परिवार।
अर्जुन भीम धीम होई बैठे पाँचो कुन्ती-कुमार॥
कौरव वंश कंस निरवंश परदा करत उधार।
अन्धपूत यमदूत भूत सम खुशी होत ललकार॥
पाँच के साँच आँच नाहीं मानत सौभइया पटीदार।
द्रोणाचार्य कर्ण भीषम सब बैठे ह निहार॥
हे भगवान बान धरि धावऽ द्रौपदी करत पुकार।
लगी डाड़ सब छूट गइल मोर टूट गइल पतवार॥
दुनो पार से छुट गइल बा नइया परल बीच धार।
हे ब्रजराज! लाज अब राखऽ यशोदानन्द दुलार॥
डूबत नाव अन्याय बोझ से तूँहीं प्रभु खेवनहार।
कुम्भकरण रावण के मारण गज कारण घरियार॥
कंस पछारन सन्त उवारन टारत धरती के भार।
गणिका गिद्ध अजामिल सेवरी सुपच सदन चमार॥
अधम उधारन जन के कारण धरत आपु अवतार।
कहत ‘भिखारी’ मारि दुष्टन दल करहुँ बिहारी बिहार।
कृपा के सिन्धु बन्धु लक्षमण के सुनि लेहु अरज हमार॥