भजन-कीर्तन: कृष्ण / 2 / भिखारी ठाकुर
प्रसंग: श्री कृष्णचन्द्र का कारागार में जन्म तथा देवकी की विनती पर उन्हें यशोदा के घर भेजने का वर्णन।
भादो के अन्हारी रात पावन परम सुहावन हो लाल।
रौहनी में भइलन सरकार, अइन बुधबार हो लाल।
आहो लाल रोहिनी में भइलन सरकार॥
ऊपर से बरसत बुनियां, सुतल सारी दुनियाँ हो लाल।
देव-गन जय जयकार, करत बारम्बार हो लाल।
खुली गइलन बेड़िया-हथकड़िया, मकान के केवड़िया हो लाल॥
नींद में अचेत जमादार, सकल पहरेदार हो लाल।
देवकीजी पतिजी से कहली, निजहिं जेहल रहलीं हो लाल।
लेई जाहु यमुना का पार, यशोदा दरवार हो लाल।
लेई गइलन यशोदा महलिया, ना जानल केहू हलिया हो लाल।
कुंअर के दिहलन पार कुंअरी ले तइयार हो लाल।
हेली कर यमुना के पार, अइलन कारागार हो लाल।
रसे-रसे होत गुलजार, तब मचल हाहाकार हो लाल।
बाजावा करत बा अवाजवा, यशोदा दरवाजावा हो लाल॥
जुटल बाड़न नेटुआ नगार बहुत बेशुमार हो लाल॥
बिजय के बाजत बा नगारवा भइल धूम-गजरवा हो लाल॥
गावत ‘भिखारी’ ललकार, हम पाइब गले हार हो लाल॥