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भजन-कीर्तन: कृष्ण / 3 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

श्रीकृष्णचन्द्र के जन्म पर यशोदा के घर-उत्सव के वातावरण का गायन।

भादो के अन्हरिया घन छटा करिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।
रोहिनी लगन अष्टमी रइन बुधवरिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे॥
देवकी ललन होइ कर ओहि घरिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।
गइलन यशोदा अटरिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।
सोहर गावत बा बाजाई कर थरिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।
पहुँचल सगरो खबरिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।
कहत ‘भिखारी ठाकुर’ पीटि के थपरिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।
लगन के लागल लहबरिया, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।