भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भजन-कीर्तन: कृष्ण / 4 / भिखारी ठाकुर
Kavita Kosh से
प्रसंग:
श्री कृष्णचन्द्र के जन्म पर उत्सवी सभा का वर्णन।
कीर्त्तन
अँगनइया में भीर भइल भारी।
शोभत बा सोहर सभ्य के गारी, झूम-झूम के बाजत बा थारी॥ अँगनइया में॥
दही-कादो से बोथाइल बा सारी, छर-छर चलत पिचकारी॥ अँगनइया में॥
परदा का भीतर से आवत नारी, करिके निज सवारी॥ अँगनइया में॥
चाहत निशदिन हरदम ‘भिखारी’, चरण कमल सरकारी॥ अँगनइया में॥