भजन-2 / नज़ीर अकबराबादी
भूल ठिठक हठ संग लगा करले हठ का बैराग
अरे मन ध्यान लगा दे।
माला पेम फिरा नित हिरदय भनक जतन से मार।
जोगी का विस्तार बना और कानों मुंदरे डाल
न ला पर दुविधा चित में।
फेरी फिर कर नाद बजा या अस्तल आसन मार। अरे मन.
सीख फकीरी पंथ मियाँ या ठान गृहस्थी छंद-
न दे टुक जी को डिगने।
जब लागेगी लाग सुरत धर बैठा कर आनंद-
बनज बना व्योपार चला या सब तज हो आजाद
न दे टुक तार बिखरने
ठहर गयी जब याद तो पा फिर भोजन और परसाद। अरे मन.
साथ कहा या संत कहा भक्ती पंथ बिचार,
तनक रख चित को थामे।
भूलेगी जब दूजी सुध तब ले पीतम दरबार-
अरे मन ध्यान लगा दे।
कर शब्दों के अर्थ सुना या नित्य कथा को बाँध-
लगाए रख धुन हाँ में।
जी की खेंचा खेंच गई फिर है तुझको है क्या आँच॥ अरे मन.
भेष बदल या मत बदले ह्यां बैठा रह हर आन
नजर मत फेर उधर से।
तुझसे नजीर अब कहता है जो ठीक उसी को जान
अरे मन ध्यान लगा दे।