भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भजमन राम सिया भगवानै / ईसुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भजमन राम सिया भगवानै,
कछू संग नइँ जानै,
धन सम्पत सब माल खजानौ,
रैजें येई ठिकानैं।
भाई बन्द उर कुटुम कबीला,
जे स्वारथ सब जानैं।
कैंड़ा कैसौ छोर ईसुरी,
हँसा हुयें रवानै॥