भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भजो रे मन शंकर नाम उदार / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भजो रे मन शंकर नाम उदार।
शिव समान नहीं आन जगत में दाता दीन दयाल।
बाजत गाल निहाल करत है हर-हर सुनत पुकार।
किए छार रतिपति के छन में करूणा सिंधु निहार।
रति के विनय सुनत शिवशंकर भए प्रसन्न त्रिपुरार।
द्विज महेन्द्र लखि भाल चन्द्र को जन्म सुफल किए डार।
कैलासी कासी के बासी पाप मेटावनहार।
भजो रे मन शंकर नाम उदार।