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भटकन / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
इतना मायावी तांत्रिक जाल
इतना भक भक उजाला
इतना भास्कर देय तेज
इतनी भयावह
हरियाली
इतना ताम झाम
इतने मुँह बाये
खडे सगे संबधी
पहले से ही
तय रास्ते
पगडडियाँ
और छोड देता है
वह नियन्ता
हमें सूरदास
की तरह
राह टटोलने।