भटकलोॅ चिड़िया / अवधेश कुमार जायसवाल

राह भटकलोॅ चिड़िया बैठलोॅ एक ठूंठ केॅ डार
ताकै छै उल्टी-उल्टी केॅ कब ऐतै उजियार।
घना अंधेरा, हाथ नै सूझै, करिया छै आकाश
जो रे सूरज, भेलें कलमूहाँ, करलें सत्यानाश।
कन्नें हमरोॅ खोता न्यारा, कोंन दिशा में पेड़
कोंन दिशा में कास केॅ जंगल, कन्नें गेलै मेड़।
दोसर चूजा पेट भरै छै, हमरोॅ चूजा भुखलोॅ
ठरोॅ सें कांपै होतै बचबा, हे देवा की करल्होॅ।
मेघ घिरलोॅ छै, नै चंदा के, नै तारा के आस
बस एक जुगनू के आसा छै, विह्वल ताकौं आस।

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