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भटक रहे हैं दिल को आईना बनाए हुए / विजय किशोर मानव

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भटक रहे हैं दिल को आईना बनाए हुए
वो ख़ुद को अपने ख़यालों में हैं बसाए हुए

मंज़िले-शौक़ अभी दूर, बहुत दूर-सी है
पांव बोझिल हैं और दर्द से नहाए हुए

हमने ढूंढा है अंधेरों में उन्हें आज तलक
वो ख़ुद को अपने उजालों में थे छिपाए हुए

है मुलाक़ात की मंज़िल तो बहुत दूर अभी
और हम भूल गए रास्ते बताए हुए