भड़ाम रस / हरजीत सिंह 'तुकतुक'
राक़ेट से बोला यह बम,
आग लगते ही हो जाते हो सरगम।
एक बार ट्राई करो, लीग से हटो।
कभी तो मर्दों की तरह, ज़ोर से फटो।
राक़ेट बोला
यह तेरे पिछले कर्मों की सजा है।
कि आग लगाते ही भाड़ से फट जाता है।
बेटा फटने से कहीं ज़्यादा मज़ा
उड़ने में आता है।
इस डिस्कशन ने पकड़ा ज़ोर
ढेर सारे पटाखे इकट्ठे हो गए चहुं ओर।
बम बोला
मेरी आवाज़ से जग हिलता है।
राक़ेट बोला
मेरी आभा से नभ खिलता है।
इतने में ही वहाँ एक फुलझड़ी आई।
उसने दोनो की पूँछ में आग लगाई।
दो ही पल में,
सारा डिस्कशन सिमट गया।
एक बेचारा आसमान में उड़ गया।
दूसरा वहीं पड़ा पड़ा फट गया।
कविता का सार
फुलझड़ियों से बच के रहना।
यह ऐन वक्त पे दग़ा देती हैं।
कभी तो बम में लगा देती हैं आग।
कभी राक़ेट सा हवा में उड़ा देती हैं।