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भतूळियै ज्यूं डोल / ओम पुरोहित कागद

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चारुं कूंटां स्यूं
दे ताळी
खा गुलाची
तूं के ढूंढै बावळी
म्हारै तपतै ड़ील पर ?
म्हारी छाती ऊपर
सोयी बेकळू रो
एक-एक कण
उठा
बांच
सू‘घ
चाख
तूं के खोज्यां चावै ?
अर क्यूं रीसां बळती
म्हारै नानड़ियां
मिणियां सा
बाळू रै कणा नै
तपा-तपा
उडा-उडा
नचा-नचा
क्यूं पटकै
धोबी पाट सा
दाव लगा ?
थमज्या पून बावळी
मत ना
मन नै रोसै
छांट पाणी रै खातर
बरसां री म्हारी
जगजाणी
तपस्या नै
मत ना लजा ।
बोल,बोल !
टिटोड़ीज्यों बोल
भतूळियै ज्यूं डोल
अर जा
आभै रै बारणै
थारै
म्हारै पांती र
साम्योड़ै पाणी रै
खजानै रा फाटक खोल !
डोल,डोल !
आकसियै सूरज रै बारणै
अर खोल
रीसा री गांठां
उण रै सामनै !
खोल, खोल !
जीवण देणै रै
नाम ऊपर
म्हारै डील मांय
भीतर तक पड़ी
पाणी री
एका-एक छांट नै
बाळ
सूखा
चूस
चाट
सर्वनास करणियै
सूरज री
सळली पोल, खोल !
अर फेर
बजा ताळी
खा गुळाची
मीठी-मीठी
साची-साची
म्हारी पून बावळी !