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भद्र महिलाएँ / रणजीत
Kavita Kosh से
भद्र महिलाएँ
सुंदर तो हैं ये
देख सकते हैं इन्हें आप दूर से
पास से भी
घूर भी सकते हैं शायद!
एकाध रिमार्क भी कस सकते हैं
लेकिन इन्हें छूना मना है!
क्योंकि आखिर
'शो-विंडो' में बंद खिलौने भर तो हैं ये!
इनकी आत्मा की शमा पर एक चिमनी है गर्म-गर्म
छूकर जिसे
आप समझेंगे
दिल को समझाएँगे
कि आपने छुआ है इन्हें
पर नहीं यह समझ पाएँगे
कि इनके-आपके बीच में है पारदर्शी शीशे की दीवार
छुओ जिसे
चूमो जिसे
बाँहों में बाँधो भले
लौ पर निष्कंप रहेगी
निर्लिप्त! अनासक्त! रागातीत!
(ऋषियों की पितृभूमि भारत है!)
क्योंकि जीवित मांस के पुतले नहीं ये
महज़ शीशे के आवरण हैं!