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भय / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
डरता हूं अपने सन्नाटे से
मेरे बचपन में
राख हुई झोपड़ी
का नीला धुआं
अब तक फैला है
मेरे भीतर
मैं उस धरती पर बिखरे भय से
डरा हुआ हूं आज तक
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