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भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट / हरियाणवी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट !
याँ ऎसा रखते मध्यम बाना
मिलता पटिया पुराना ;
वाँ मिलते हैं फुलबूट ।
भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट !
भावार्थ
--'चलो भाइयो, चलो फ़ौज में भरती हो जाओ । देखो, तुम्हें लेने के लिए रंगरूट तुम्हारे दरवाज़े पर आए हैं ।
यहाँ तुम्हारा बाना(वेश)साधारण किस्म का है क्योंकि यहाँ तुम्हें पहनने को फटे-पुराने कपड़े ही मिलते हैं । जबकि
वहाँ फ़ौज में तुम्हें नए कपड़ों के साथ-साथ फुलबूट भी पहनने को मिलेंगे । चलो भाइयो, चलो । फ़ौज में भरती
हो जाओ ।'