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भरत भक्ति / राघव शुक्ल

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राम गये वन लखन सिया सँग,पूर्ण किया है वचन मातु का
भइया भरत मनाने पहुंचे , शीश धरी हैं चरण पादुका

टूट रहे हैं भीतर भीतर
आज अयोध्यावासी सारे
राजा के बिन प्रजा अधूरी
हैं सुमंत्र समझा कर हारे
प्राण गवाये हैं दशरथ ने,चक्र समय का नहीं है रुका

वचन और मर्यादा पालन
रघुकुल रीति सदा चलि आई
नहीं राम के जैसा राजा
नहीं भरत के जैसा भाई
सिंहासन पर धरे खड़ाऊं ,फैल रहा है तेज भानु का

राम कौन हैं?बतलाता हूँ
मर्यादा का अर्थ राम हैं
राम नहीं नृप मात्र अवध के
पूरा आर्यावर्त राम हैं
हों दिलीप या दशरथनंदन,मुकुट नहीं रघुवंश का झुका