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भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “राजा का जोगी वेष में आना”

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

घोड़ा रोवय घोड़ेसार मा, घोड़ेसार मा या, हाथी रोवय हाथीसार मा
घोड़ा रोवय घोड़ेसार मा, घोड़ेसार मा वो, हाथी रोवय हाथीसार मा
मोर रानी ये वो, महलों में रोवय
मोर रानी ये या, महलों में रोवय
येदे धरती में दिए लोटाए वो, ऐ लोटाए वो, भाई येदे जी
येदे धरती में दिए लोटाए वो, ऐ लोटाए वो, भाई येदे जी
सुन लेबे नारी ये बाते ला, मोर बाते ला या, का तो जवानी ये दिए हे
सुन लेबे नारी ये बाते ला, मोर बाते ला वो, का तो जवानी ये दिए हे
भगवाने ह वो, मोर कर्म में ना
भगवाने ह या, मोर कर्म में ना
येतो काये जोनी मोला दिए हे, येदे दिए हे, भाई येदे जी
येदे काये जोनी दिए हे, येदे दिए हे, भाई येदे जी

– गाथा –

ऐ रानी सामदेवी रइथे ते रागी (हौव)
राजा भरथरी के वियोग में (हा)
मुड पटक पटक के रोवत रिथे (रोवत थे)
अउ कलपत रिथे (हौव)
किथे हे भगवान (हा)
मोर किस्मत फूट गे (फूट गे)
अतका बात ला सुन के पारा परोस के मन आथे (हौव)
आथे त रानी सामदेवी ल पूछथे (हा)
रानी (हौव)
तोला का होगे (हौव)
ते काबर रोवत हस (हा)
तब रानी सामदेवी रहाय ते बतावत हे (का बतावत हे)

– गीत –

बोली बचन मोर रानी हा, मोर रानी हा वो, सुन बहिनी मोर बाते ल
बोली बचन मोर रानी हा, मोर रानी हा या, सुन बहिनी मोर बाते ल
मोर माँगे के या, येदे सेन्दुर नईये
मोर माथे के वो, येदे टिकली नईये
में ह जन्मों के होगेंव रांडे वो, भाई येदे जी
में ह जन्मों के होगेंव रांडे वो, भाई येदे जी
भाई रोवे गुजराते हा, गुजराते हा वो, बुलबुल रोवे रानी पिंगला के
भाई रोवे गुजराते हा, गुजराते हा या, बुलबुल रोवे रानी पिंगला के
बारा कोस के वो, फुलवारी रोवय
बारा कोस के ना, फुलवारी रोवय
उहू जुलुम होगे सुखाये वो, भाई येदे जी
उहू जुलुम होगे सुखाये वो, भाई येदे जी

– गाथा –

दोनों हाथ ला जोड़ के रानी सामदेवी किथे रागी (हौव)
बहिनी हो (हा)
मोर मांग के सेन्दुर मिटागे (हौव)
मोर माथ के टिकली मिटागे (मिटागे)
में जन्मों के रांड होगेंव (रांड होगेंव)
सब झन पूछथे, ये बात कइसे होइस रानी (हौव)
तब बताथे (हा)
जे दिन मोर राजा इहां ले गिस (हौव)
तो कहिस हावय (हा)
जब तक के में जिन्दा रहूँ (हौव)
तब तक ये तुलसी के बिरवा हराभरा रही (हा)
अउ जब तक ये तुलसी के बिरवा हराभरा रही, समझ जबे में जिन्दा रहूँ (जिन्दा रहूँ)
अउ तुलसी के बिरवा सुखा जही (हौव)
त में मर जहूं (मर जहूं)
यही तुलसी के बिरवा ला मोला निशानी देके गिस हे बहिनी हो (हौव)
आज ये तुलसी के बिरवा सुखा गे (हा)
मोर करम फुट गे (हौव)
आज इही मेर के बात इही मेर के रइगे रागी (हा)
राजा भरथरी राहय तेन बिनती करत अपन घर ला आवत हे (हा)

– गीत –

बिनती करे राजा भरथरी
राजा भरथरी या, आवत थे अपन घरे ला
येदे घरे में वो, पहुँचत हबाय ये द्वार में
येदे द्वार में या, लिली घोड़ी ला देखत हाबे ना, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
मन में सोंचे लिली घोड़ी हा
लिली घोड़ी हा वो, राजा भरथरी ला देखी के
में ह आये हव गा, राजा ऐ इंदर पठाये हे
मोला कोने बेटा देही ए गांवे काहथे, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
गुस्सा होवय लिली घोड़ी हा
लिली घोड़ी हा वो, राजा भरथरी ला देखी के
वो दे काहत ना, का ये बतावव ये तोला ना
अइसे बोलत हे वो, लिली ये घोड़ी हा आगे ना, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी

– गाथा –

अब ये राजा भरथरी राहय ते, अपन दरवाजा में पहुँचथे रागी (हौव)
जब दरवाजा में पहुँचथे, तब एक लिली घोड़ी नाम के (हा)
वो घोड़ी वो दरवाजा में बइठे रिहिस (बइठे राहत हे)
वो इंदर भगवान के (हौव)
भेजे हुवे लिली घोड़ी रिथे (हा)
गुस्सा हो के लिली घोड़ी किथे राजा (हौव)
तें तो योगी होगेस (हा)
ना तोला घोड़ा चाहिए (हौव)
ना तोला हाथी चाहिए (हा)
अब तें तो योगी होगेस (हौव)
अउ इंदर भगवान भेजे हे तोर खातिर (हा)
मोला लगाम कोन दिही (हौव)
अइसे कइके राजा भरथरी के सामने में (हा)
लिली घोड़ी रहाय तेन प्राण त्याग देथे (प्राण त्याग देथे)

– गीत –

आगे चले राजा भरथरी, राजा भरथरी या, देखथ रइये किसाने ला
आगे चले राजा भरथरी, राजा भरथरी वो, देखथ रइये किसाने ला
कोनों चिन्हे नहीं, येदे योगी ला या
कोनों चिन्हे नहीं, येदे योगी ला वो
वो ह डेहरी में धुनी जमाये हे, ये जमाये हे, भाई येदे जी
वो ह डेहरी में धुनी जमाये हे, ये जमाये हे, भाई येदे जी