भरथरी लोक-गाथा - भाग 4 / छत्तीसगढ़ी
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कलपी-कलप भरथरी ये
रानी संग में आय
देख तो भरथरी पूछत हे
सामदेई ये ओ
बानी बोलत हे राम
भेद नई जानँव
सुन जोड़ी मोर बात
सोन-पलंग कइसे टूटे गा, कइसे टूटे गा, भाई ये दे जी।
तब तो बोलय भरथरी ह
कोन जानत हे ओ
भेद ल देतिस बताय
जानी लेतेंव कइना
ए दे बोलत हे न
भरथरी ह ओ
सामदेई ये न, सुन्दर बानी बताय
सुन राजा मोर बात
ये दे अइसे विधि कर बानी ओ, दाई बोलय ओ, भाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा में
सुनिले भगवान
कइसे विधि कर का बोलय
सुनिले राजा मोर बात
करले भोग-विलास
आज पहिली ये रात
मोर बारम्बार मानुष चोला ओ, नई आवे ओ, भाई ये दे जी।
सोने पलंग कइसे टूटिस हे
रानी हॉसे ह ओ
तेकर भेद बता देबे
मैं हर नई जानँव राम
छोड़ दे ओ बात
ओला तुमन सुरता झन करव ओ, झन करव ओ, भाई ये दे जी।
मोर हरके अऊ बरजे ल नई मानय
सुनिले भगवान
कइसे विधि कर का बोलय
सुनिले राजा मोर बात
रामदेई जानत हे राज
वोही देहि बताय
सोन पलंग कइसे टूटे गा, कइसे टूटे गा, भाई ये दे जी।
मन मा गऊर करके
भरथरी ये ओ
देख तो दीदी अब सोचत हे
सुनिले भगवान
का तो जोनी ये न
मैं कमायेंव ह राम
रानी संगे में हो
सुख नइये गिंया
मोर कइसे विधि राजा सोचय, भाई सोचय ओ, भाई ये दे जी।
जाई के बइरी ह बइठत हे
मोर कछेरी ये ओ
भरे कछेरी, दरबार मा
एक ओरी मोर बइठे हे
मोर चियां ये ओ
दुए ओरी पठान ए न
तीन ओर ये राम गोंड़-गिराईओ
सुन्दर लगे दरबार, दरबार ओ
भरथरी ये न,
चल बइठे दीदी
मोर कइसे विधि कर मन म भाई गुनय ओ, भाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मा
सुनिले भगवान
एक महीना, दू महीना गुजरत हे
चारे महीना ओ
लगे पाचे के छांय
दस महीना मा ना
दिल्ली सहर मा
मोर रानी के ओ
सुन्दर गोदी मा न
बालक होवय ओ, बाई होवय ओ, भाई ये दे जी।
जब बोलय मोर मानसिंग
सुन कइना मोर बात
दिल्ली सहर मां
मैं बइठे हँव
भरथरी ल ओ
छठी निमंतरन
देई देवॅव कइना
सुनिले नारी मोर बात
जब सोचत हे ना
मोर कइना ये ओ
मेंहर नई जानँव राम
तैंहर ये दे जोड़ी
मोर छठी के निमंतरन भेजय ओ, धवनिया ओ
कइसे धवनिया ल भेजत हे
मोर मानसिंग ओ
धवनिया ह रेंगना ल
कइसे रेंगत हे
सांप सलगनी राम
मीथी दुरंगिनी ओ
हरिना के दीदी
मोर निच्चट ये ना
कुकुर लुरंगी ये राम
मोर बाघे के मार बघचोपी ओ
तले आवय ओ, भाई ये दे जी।
छुटे हे कारी पसीना ओ
चले आवत हे ओ
देख तो दीदी धवनिया ह
भरे कछेरी न
मोरा राजा के ओ
भरथरी ये न
गद्दी मा बइठे हे राम
मोर धवनिया ये ओ
ओतके बेरा न, चल आई के न
मोर करे जोहार, पत्र देवत हे राम
बाची लेवॅव गिंया, मोर रानी ह ओ
चल भेजे ह न
मोर आशीष अऊ पैलगी ओ, ये दे भेजे ओ, रानी ये दे जी।
चारो मुड़ा खबर भेजत हे
मोर भरथरी ओ
कइसे छठी निमंतरन म
सबे सइना ल न
मोर लिए सजाय
एक डंका मा ओ
मोर होगे तइयार
दुसरैया ए ना
मोर होय हुसियार
मोर तीने डंका में निकलगे ओ, ये निकलगे ओ, भाई ये दे जी।
घोड़ा वाला घोड़ा मा चघे
हाथी वाला ये ओ
हाथी मा होय सवारे न
पैदल वाला ये ओ
रथ हाके गिंया
सायकिल वाला ए न
चल रेंगना हे
मोर गद्दी वाला, गद्दी चाले ओ, भाई चाले ओ, भाई ये दे जी।
बग्घी वाला बग्घी मा जावे
टांगा वाला ये ओ
देख तो दीदी टांगा खेदत हे
सबे सइना ए ना
मोर रेगे भइया
जऊने समय में ना
लुसकैंया ए ओ
मोर ढुरकी अ रेंगना ल रेगे ओ
भाई रेगे ओ, भाई ये दे जी।
आघू हाथी पानी पीयत हे
पाछू के हाथी ये ओ
ये दे दीदी चिघला चॉटय
जेकर पीछू ओ
फुतकी चॉटय हे न
चले जावय भैया
मोर सेना ए ओ
लावे लसगर ये न
फौज-फटाका ओ
मोर घटकत-बाजत जावे ओ, चल जावे ओ, भाई ये दे जी।
मेड़ों म पहुँचगे भरथरी
मोर जाई के ओ
देखतो दीदी तम्बू तानत हे
हाथी वाला हर ओ
गेरा देवे गिंया
मोर घोड़ा वाला
मोर दाना ए ओ
मोर चना के दार फिलोवय ओ,
ये फिलोवय ओ, भाई ये दे जी।
येती बर देखत हे मानसिंग
सैना हर आगे ओ भरथरी के
मोर मेड़ों म ओ
तम्बू ताने हे ना
कइसे करँव भगवान
मॅयहार कइसे के पूर्ति ल करॅव ओ
कइना गुनय ओ, भाई ये दे जी।
नई पुरा पाह्व में सेना बर
खाई-खजेना
नई तो पुरा पाहव मैं
ओढ़ना अऊ दसना
बोली बोलत हे ओ, मोर मानसिंग
सुनिले नारी मोर बात
तोरे सहारा मा भेजेंव, भाई भेजे ओ, भाई ये दे जी।
थारी मं फूल ल धरिके
रानी चलत हे ओ
देख तो दीदी मोर मंदिरे म
मोर मंदिर म ओ
रानी जाइके न
चल भजत हे राम
होगे परगट न
मानले बेटी मोर बात
पूरा करके गिंया
तोर का मनसे हे तेला मांगा ओ, मॅयहर दिहा ओ, भाई ये दे जी।
भाखा चुकोवत हे ये दे ओ
सरसती ये ओ
जऊने समय भाखा चुकोवत हे
भाखा चुकी गे ओ
मांग ले बेटी तॅय
तोला देवॅव वरदान
तोर जोगे हर पूरा होगे ओ, भाई बोले ओ, भाई ये दे जी।
भरथरी आये हे सैना
मोर लेके दाई
मोर घर में कुछू तो नइ ए ना
सबै सेना के ओ
पूरती करदे दाई
पईंया लागत हॅव न
मोर लाजे ल ये दे बता दे, ये बचाबे ओ, भाई ये दे जी।
हाथी वाला बर हाथी ओ
मोरा गेर ल ओ
कइसे के बाद मँ भेजत हे
पूरती करिहँव बेटी
तैंहर जाना कइना
मोर घर म आके पलंग म ओ मोर बइठे ओ, भाई ये दे जी।
रइयत मन बर ये दे ओ
बगरी ल गिंया
बिन आगी पानी के मढ़ा देबे
मोर कलेवा ओ
सुख्खा म नी खवाय
घोड़ा वाला बर ना
मोर दाना ये राम
जब भरथरी न
मन म गुनत हे ओ
रामदेई ए ना
चल नई साजे ओ
ये दे साजे गिंया
मोर सारी के अव्बड़ होवे ओ, मोर नेम ओ, भाई ये दे जी।
बड़ अक्कल वाली ये रानी ये
देख तो भगवान
साते मँ कैसे आ बइठे हे
मनेमन मँ भरथरी हर, मोर गुनत हे ओ
बिन आगी पानी के बनावत हे
सबे सइना के न
मोर सोहाग ओ
चल बनाई के न
मोर सुन्दर कलेवा खवावय ओ, भाई ये दे जी।