भरथरी लोक-गाथा - भाग 6 / छत्तीसगढ़ी
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कोठा मँ बछिया हर आजे ओ
चोला छोड़त हे
देख तो दीदी पूंछी पटक के
नरिया के गिंया
मोर आंसू ल ओ
नीर गिरथे राम
बछिया के दीदी
जब राम-राम कहिके चोला ओ बाई छोड़य ओ, भाई ये दे जी।
जब भरथरी लेगी के
मोर फेंकत हे ओ
देख तो दीदी भांठा मा
माटी देई के ना
चले आवत हे
पांच जोनी ये ओ, धरि लिहे गिंया
मोर कइसे विधिकर बोलय ओ भाई बोलय ओ, भाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मा
तीने महिना म ओ
देखतो दीदी जनम धरत हे
मोर बिलाई के
चल पेट म न
मो कोठी म अवतार लेई लेवय ओ, लेई लेवय ओ, भाई ये दे जी।
मेऊँ-मेऊँ नरियावत हे
सुनिले भगवान
काने खबर भरथरी
मोर आवाज ये ओ
जेला सुनत हे न
खोजत-खोजत गियां
चले जावत हे ओ
मोर कोठी म न
मोर गोड़ा तरी चल बइठे ओ, चल देखय ओ, भाई ये दे जी।
फाट जातीस धरती हमा जातेंव
दुख सहे नई जाय
का तो जनम जोगी धरेहॅव
दुख परिगय राम
हाल देना बताय
ओही जनम के, मोर सारी येन
वचन पियारी राम
मोर सोने पलंग कइसे टूटिस ओ, रानी हांसिस ओ, भाई ये दे जी।
सुनिले भरथरी मोर बात
छय जोनी ये ओ
आज मय हर धरि लिहेंव
सात जोनी मे न
तोला देहॅव बताय
मोर बिलाई ए ओ
गोड़ा तरी दीदी
सतपुर के न
नाम लेई के मोर चोला ल ये दे छोड़य ओ
भाई छोड़य ओ, रानी ये दे जी।
सात जोनी अवतारे मा
मॅय बताहॅव कहय
देख तो दाई मोर बोलत हे
भरथरी हर ओ
कइसे जावत हे न
मोर लहुटी आवय
रंगमहल म, रंगमहल म, भाई ये दी जी।
खोजत-खोजत राजा नई पावय दीदी
बइहा बरन भरथरी ये
मोर दिखत हे न
मोहिनी ये सुरत
मोर कइसे विधि कर
काला ओ तक होगे ओ, रानी ये दे जी।
साते अवतारी मँ जावत हे
देख तो रानी ये ओ
काखर कोख मँ जनम
मॅयहर लेहॅव गिंया
मन म सोचत हे न
ये दे खोजे बर हंसा ओ जीव जावय ओ, भाई ये दे जी।
गढ़-नरुला के राजा जेकर
रानी ये न
जावय रानी हर
सुन राजा महराज के
एके महीना ये ओ
दूसर महीना मोर
दस महीना के छइहां ओ बाई लागय ओ, भाई ये दे जी।
दसे महीना हर होवत हे
ए दे रानी ल राम
देखतो अवतारे ल लेवत हे
मोर कइना ये ओ
गढ़-नरुले मा
डंका बाजत हे राम
आनंद मंगल मनाय
मोर देवता मन
फूल बरसावय ओ, बरसावय ओ, भाई ये दे जी।
साधू सन्यासी
जय-जय कार करॅय
देख तो दीदी रंगमहल म
फौज पटक्का ये न
ये दे फुटत हे राम
आनंद मंगल ये ओ
दरबार में न
जेकर होवय हीरा
मोर कइना जनम
रानी लेवय ओ, भाई लेवय ओ, रानी ये दे जी।
एके महीना
होवत हे
मोर कटोरी म
दूधे पीयत हे कइना हर
दूसर महीना, पलंगों में खेलय
तीन महीना में राम
किलकारी देवय
मोर चार-पांच महीना ओ, गुजरे ओ, भाई ये दे जी।
साते महिना ये
आठे ये मड़ियावत हे ओ
धीरे-धीरे खेल बाढ़य
गली-अंगना म
खेलत हावय कइना
धूर-खावत हे राम, धूर बाढ़त हे ओ
मोर साल भर के होवय ओ, ये दे होवय ओ, भाई ये दे जी।
मोहिनी होय बरोबर
कइसे दिखत हे न
देखतो दीदी रुपदेई
गढ़-नरुले म न
मोर आनंद राम
मंगल करत हे ओ
मोर साल दू साल बीते ओ, ये दे बीते ओ, भाई ये दे जी।
आठ बच्छर के होवत हे
नव बच्छर के राम
बारा बच्छर के छइंहा ये
कइना होगे गिंया
भरथरी ये न
खोजत-खोजत ओ
चले आवय दीदी
मोर राजा ये न
रंगमहल मँ आइके बोले ओ, ये दे बाले ओ, भाई ये दे जी।
सुनले कइना मोर बात ल
ओही जनम के ओ
तँय तो हीरा मोर सारी अस
ए ही जनम ओ
राजकुमारी बने
छय जनम तोर पाछू धरेंव
भेद नई तो बताय
मोला भेद ल देते बताय ओ, बताई ओ, भाई ये दे जी।
सोने पलंग कइसे टूटिसे
रानी हाँसिसे ओ
जेकर भेद बता देते
सुन लेतेंव कइना
जीव हो जातिस शांत
आनंद मंगल ओ
करी लेतेंव कन्या
मोर अइसे बानी
हीरा बोलय ओ भरथरी ओ, भाई ये दे जी।
तब तो बोलत हावय कइना हर
सुनले भांटो मोर बात
ओही जनम के
तोर सारी अॅव
ए ही जनम म
राजकुमारी अव न
मय तो बने भांटो
अभी नई तों कहॅव
मोर जियत खात होई
होई जावय ग, भाई ये दे जी।
जऊने दिन मोर विहाव
होई जाहय भांटो
गवना कराके, ले जाही न
चले आबे भांटो
तोला देहॅव बताय
मोर अइसे बानी हीरा बोलय ग, ये दे बोलय गा, भाई ये दे जी।
सोने पलंग कइसे टूटिसे
रानी हाँसिसे ओ
जेकर भेद ब
अतका वचन ल सुनके
भरथरी ह ओ
लोटी आवे रंगमहल म
अपन दरबार मँ आके बोलथे राम
सुन दाई मोर बात
साते जनम ओ सारी लेइस हवथ
भेद नई तो बताय
अइसे बानी हीरा बोलय गा, ये दे बोलय गा, भाई ये दे जी।
जेकर बीच मँ सामदेई
बानी बोलत हे राम
सुनले जोड़ी मोर बात ल
घर मँ आये हों
जे दिन गउना कराय
बन किंजरत हव न
पाछू परे हव राम
अपन सारी के ओ
भेद तोला नई बताय ओ, बताय ओ, रानी ये दे जी।
तुम तो बने-बने बुलथव
घर म मय हँव ओ
कइसे कलपना ल का कहँव
भगवाने गिंया
जेला गुनत हे नाम
भरथरी के ना
मति हर जाबे न
मोर रंगमहल मं आनन्द मंगल मनावॅव ओ, भाई ये दे जी।
एतीबर रुपदेई रानी के
मंगनी होवत हे राम
देख तो दीदी दिल्ली सहर म
चले आवय हीरा
मंगनी-जंचनी होई जावय बेटा
ये दे रचे बिहाव
मोर आनन्द मंगल मनावे ओ, ये मनावे ओ, भाई ये दे जी।
गढ़ दिल्ली बरात ये
चले आवत हे राम
राजा मानसिंह धरिके
गढ़-नरुलै न रुपदेई ल राम
ए बिहा के न
आनन्द मंगल मनावॅव ओ
दाई मोर सजे बराती आगे ओ, बैरी आगे ओ, भाई ये दे जी।
काने खबर परथे
भरथरी के ओ
देखतो दीदी घोड़ा साजत हे
बारामरद के घोड़ा साजा के न
भरथरी ये राम
चले जावॅव गिंया
गढ़-नरुले म ओ
मोर जाई के बोलत हे बानी ओ, दाई बानी ओ, भाई ये दे जी।
सुनले कइना मोर बात ल
हाल दे दे बताय
बात पूछे चले आये हॅव
भरथरी के न
बोली सुनथे राम
रुपदेई ये ओ
एदे सुन्दर मधुर बानी ओ, दीदी बोलय ओ, भाई ये दे जी।