Last modified on 10 अक्टूबर 2017, at 10:29

भरम / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

कुछ तो रखता गुज़रे हुए मौसम का भरम
चाँदनी रात, पहाड़ों की हवा और शबनम,
वो तबस्सुम से खिली रात में महका आलम
सुलगी साँसों का, बेताब निगाहों का सितम,
मेरी रग-रग में तेरी याद है अब तक पैहम
तूने क्या सेच के मुझको भुलाया है सनम।