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भरम / शर्मिष्ठा पाण्डेय
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मंडी सजाये बैठे हैं ईमानदार लोग
कुछ तो तवायफों को भरम रहने दीजिये
माना कि बिकता सौदा है मुंह-मांगे दाम पे
इक ज़रा मिल्कियत की शरम रहने दीजिये
कू-ए-निगाराँ में लगी क्या खूब नुमाइश
कुछ पाक से जज्बों पे रहम रहने दीजिये
अब बे-अमां तो शपा का किरदार नहीं है
बस आप पुख्तगी का वहम रहने दीजिये
फिर आज जज्बे-सख्त से दिल तार-तार है
कोने में कहीं गोशा-नरम रहने दीजिये
कू-ए-निगाराँ= महबूबों की गली
बे-अमां= आश्रयहीन)