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भरा अमित दोषों से हूँ मैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार

भरा अमित दोषों से हूँ मैं, श्रद्धा-भक्ति-भावना-हीन।
साधनरहित, कलुष-रत अविरत, संतत चचल-चिा, मलीन॥
पर तू है मैया मेरी वात्सल्यमयी शुचि स्नेहाधीन।
हूँ कुपुत्र, पर पाकर तेरा स्नेह रहूँगा कैसे दीन॥
तू तो दयामयी रखती है मुझको नित अपनी ही गोद।
भूल इसे, मैं मूर्ख मानता हूँ भवके भोगोंमें मोद॥
इसी हेतु घेरे रह पाते पाप-ताप मुझको सविनोद।
मैया! यह आवरण हटा ले, बढ़े सर्वदा शुभ आमोद॥