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भरे रहो तुम मधुर मनोहर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग इमन-ताल कहरवा)

 भरे रहो तुम मधुर मनोहर मनके कण-कणमें वसुयाम।
 नेत्र निरखते रहें निरन्तर बाहर छबिमय प्रियतम श्याम॥
 बहती रहे प्रेम शुचितम की नित्य सुधा-धारा अविराम।
 बना रहे जीवन, बस, एक तुहारा सुख-साधन अभिराम॥
 जगे न मन में इच्छा को‌ई, एक तुहारे सुखको छोड़।
 लगी रहे प्रत्येक वृािमें, सुख पहुँचानेकी शुचि होड़॥