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भरोसा उसे मेरी यारी का है / निश्तर ख़ानक़ाही

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भरोसा उसे मेरी यारी का है
हुनर मुझमें मतलब-बरारी का है

मेरे दिल को दुनिया से नफ़रत न थी
नतीजा तेरी ग़म-गुसारी का है

मैं अज़-ख़ुद* बिखरना न चाहूँ मगर
अजब वक़्त ख़ुद-इंतशारी* का है

बहाने का रंजिश के जोया है वह
यह मौक़ा अजब होशियारी का है

तख़ातुब* में इज़्ज़त भी, अलक़ाब भी
ये सब सिलसिला नागवारी* का है

गिराँ मुझपे है होशमंदी तेरी
तुझे दुख मेरी मयगुसारी का है

1- अज़-ख़ुद--अपने आप

2- ख़ुद-इंतशारी--स्वयं का बिखराव

3- तख़ातुब--संबोधन

4- अलक़ाब--सम्मानसूचक शब्द

5- नागवारी--अप्रसन्नता