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भरोसे की नींद / नील कमल
Kavita Kosh से
रोशनदान के उस पार
दिखीं दो नन्हीं बाँहें
दो हरी कोंपलें
उस तरफ दीवार पर
उग रही थीं
एक बच्चा पीपल
पचास बरस पुरानी भीत को
फोड़ कर उठ खड़ा था
दुनिया के तमाम बच्चों के लिए
मेरे हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में
उठे हुए थे
मैं आश्वस्त था
कि दुनिया बची रहेगी
जियो मेरे बच्चो,
उगो तो ऐसे
कि जैसे दीवार पर
उगता है पीपल
ताकि हम भरोसे की नींद सो सकें ।