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भरोसौ / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
घसीज्योड़ी जूत्यां मत भाळौ थे
म्हारै पावंडां राखौ भरोसौ
व्हे जावौ निसंग नचीता
पकावट ई पूगूंला म्हैं
आपरी मजल
भलांई कांटां भरिया मारग
क्यूं नीं व्है
म्है थांरी सीख रै पांण उणनै
वकार लूंला।