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भर डोंगर मऽ झूला बंध्या हो / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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भर डोंगर मऽ झूला बंध्या हो,
म्हारी रनुबाई झुलवा जाय जी।
झुलतऽ झुलतऽ तपेसरी आया,
हम खऽ ते भिक्षा देवो जी।
थाल भरी मोती राणी रनुबाई न लिया,
ये भिक्षा तुम लेवा जी।
काई करूँ हो थारा माणक मोती,
अन्न की भिक्षा देवो जी।
खेत नी वायो, खळो नी घायो, काय की भिक्षा देवाँ जी।
आवसे रे चईत को महीनो, जासां हमारा पीयर जी।
लावसा रे गहुँआ की बाळद, तव जाई भिक्षा दीसां जी।