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भला अपने कटोरे की मलाई कौन देता है / अशोक रावत

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भला अपने कटोरे की मलाई कौन देता है,
किसी मज़लूम के हक़ में गवाही कौन देता है.

वो तब की बात थी जब लोग प्याऊ भी लगाते थे,
मगर प्यासे को अब अपनी सुराही कौन देता है.

दुआओं के भरोसे छोड़ देते हैं बुज़ुर्गों को,
ग़रीबों के मोहल्ले में दवाई कौन देता है.

सभी ईमेल, मेसेज भेज देते हैं मोबाइल पर,
मेरे घर आके मुझको अब बधाई कौन देता है.

मुझे दो पल अकेले चैन से रहने नहीं देता,
मेरे एहसास को ये बेकरारी कौन देता है.

जला देता है सूरज को सवेरे, कौन है आख़िर,
हर इक दरिया के पानी को रवानी कौन देता है.

ये दुनिया सिर झुकाती है अजी अब भी लुटोरों को,
किसी ईमानवाले को सलामी कौन देता है.