भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भला अभी भी हुआ नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
भला अभी भी हुआ नहीं है।
ख़ुदा का दर भी खुला नहीं है॥
सुला लिया है तुम्हें नयन में
है इश्क़ कोई सज़ा नहीं है॥
चलो चलें हम भी उस डगर पर
कि जिस पर कोई चला नहीं है॥
बहुत अँधेरा है आज हरसूं
कहीं भी दीपक जला नहीं है॥
किया हमेशा है माँ को सजदा
कहीं भी सर ये झुका नहीं है॥