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भला ऐसी भी आख़िर बेरुख़ी क्या / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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भला ऐसी भी आख़िर बेरुख़ी क्या
न देखोगे हमारी बेबसी क्या
तमाशाई हुये जाते हैं रुख्स़त
ये रौनक़ है जहां की आरज़ी क्या
नवाजेंगे तुम्हें हम मयकदे में
सुनोगे तुम हमारी शायरी क्या
जो मेला देखने आ ही गये हो
यहां से फिर गुज़रना सरसरी क्या
बहुत ऊंचा मुक़द्दर है तुम्हारा
तुम्हारे साथ है वो सुन्दरी क्या
न गुज़रोगे इधर से क्या किसी दिन
न देखोगे हमारी बेकसी क्या
थे सिक्के हम किसी बीती सदी के
नई हम को सदी पहचानती क्या
हमारी दोस्ती तो तुम ने देखी
न देखोगे हमारी दुश्मनी क्या
किसी दिन पूछ ही लूं उस से 'रहबर`
करोगे साथ मेरे दोस्ती क्या