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भला मैं क्यों प्यार करूँ / विमल कुमार

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अगर मेरे चाहने से
हो किसी को बहुत तकलीफ़’
तो भला मैं उसे क्यों चाहूँ ?

अगर मेरे मिलने से
कोई न रह जाए सहज
तो भला मैं उसे क्यों असहज बनाऊँ ?

अगर मेरे लिखने से
कोई घबरा जाए
तो भला मैं उसे क्यों अपना ख़त पढ़ाऊँ ?

मैं किसी से प्रेम करना चाहता हूँ
उसे उसकी मुसीबतों से निकालने के लिए
अगर कोई मेरे कारण किसी मुसीबत में फँस जाए
तो भला मैं उसे क्यों प्यार करूँ ?

और अगर लग जाए बुरा तुम्हें यह सब सुनकर
तो भला मैं क्यों तुम्हारे सामने यह इजहार करँ ?